भगवान नें जन्म लेकर अपनी बाल लीला शुरू की। एक दिन भगवान रामदेव व विरमदेव अपनी माता की गोद में खेल रहे थे, माता मैणादे उन दोनों बालकों का रूप निहार रहीं थीं। प्रात:काल का मनोहरी दृश्य और भी सुन्दरता बढ़ा रहा था। उधर दासी गाय का दूध निकाल कर लायी तथा माता मैणादे के हाथों में बर्तन देते हुए इन्हीं बालकों के क्रीड़ा क्रिया में रम गई। माता बालकों को दूध पिलाने के लिये दूध को चूल्हे पर चढ़ाने के लिये जाती है। माता ज्योंही दूध को बर्तन में डालकर चूल्हे पर चढ़ाती है। उधर रामदेव जी अपनी माता को चमत्कार दिखाने के लिये विरमदेव जी के गाल पर चुमटी भरते हैं इससे विरमदेव को क्रोध आ जाता है तथा विरमदेव बदले की भावना से रामदेव जी को धक्का मार देते हैं। जिससे रामदेव जी गिर जाते हैं और रोने लगते हैं। रामदेव जी के रोने की आवाज सुनकर माता मैणादे दूध को चुल्हे पर ही छोड़कर आती है और रामदेव जी को गोद में लेकर बैठ जाती है। उधर दूध गर्म होन के कारण गिरने लगता है, माता मैणादे ज्यांही दूध गिरता देखती है वह रामदेवजी को गोदी से नीचे उतारना चाहती है उतने में ही रामदेवजी अपना हाथ दूध की ओर करके अपनी देव शक्ति से उस बर्तन को चूल्हे से नीचे धर देते हैं। यह चमत्कार देखकर माता मैणादे व वहीं बैठे अजमल जी व दासी सभी द्वारकानाथ की जय जयकार करते हैं।
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