एक दिन भगवान रामदेव जी खेलते खेलते जंगल में बढ़ते ही जा रहे थे। आगे चलने पर बाबा रामदेव जी को एक पहाड़ नजर आया। उस पहाड़ पर चढ़े तो वहां से थोड़ी दूरी पर एक कुटिया नजर आयी तब भगवान उस कुटिया के पास पहुंचे तो देखते हैं वहां पर एक बाबा जी घ्यान मग्न बैठे थे। भगवान रामदेव जी ने गुरू जी के चरणों में सिर झुकाकर नमस्कार किया। तब गुरू जी ने पूछा बालक कहां से आये हो तुम्हें मालूम नहीं यहां पर एक भैरव नाम का राक्षस रहता है जो जीवों को मारकर खा जाता है। तुम जल्दी से यहां से चले जाओ उसके आने का वक्त हो गया है। वह तुम्हें भी मारकर खा जाएगा और मेरे को बाल हत्या लग जाएगी, इसलिये तुम इस कुटिया से कहीं दूर चले जाओ। भगवान बाबा रामदेव जी मीठे शब्दों में कहते हैं - मैं क्षत्रीय कुल का सेवक हूँ स्वामी ! भाग जाउंगा तो कुल पर कलंक का टीका लग जायेगा। मैं रात्री भर यहाँ रहूँगा प्रभात होते ही चला जाउंगा और वहीं पर भैरव राक्षस के आने पर रामदेवजी ने उसका वध कर प्रजा का कल्याण किया।
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