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Tuesday, 6 November 2012

DARJI KO PARCHA

बाल लीला में कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ाना

एक दिन रामदेव जी महल में बैठे हुए थे उस समय रामदेव जी ५ वर्ष के थे। एक घुड़सवार को देखकर रामदेव जी ने बाल हठ किया कि मैं भी घोड़े पर बैठुंगा। रामदेव जी को मनाने के लिये माता ने खूब जत्न किये पीने के लिये दूध, खेलने कि लिये हाथी-घोड़े उँट आदि के खिलौने सामने रखे किन्तु अपने बाल हठ को नहीं छोड़ा। माता ने दासी को भेजकर राजघराने के दर्जी को बुलाया और समझाया कि कुंवर रामदेव के लिये कपड़ों का सुन्दर घोड़ा बनाकर लाओ उस पर लीला याने हरे कपड़े का झूल लगाकर लाना।
माता जी ने दर्जी को सुन्दर कपड़े दिये और कहा कि जाओ इन कपड़ों का घोड़ा तैयार करके लाओ। दर्जी के मन में लालच आया और उसने पुराने कपड़े का घोड़ा बनाकर उपर हरे रंग की झूल लगा दी और घोड़ा लेकर राजदरबार पहुँचा तथा रामदेव जी के सामने रखा तभी रामदेव जी ने अपना हठ तोड़ा।
श्री रामेदव जी कपड़े के बने घोड़े को देखकर बहुत खुश हुए और घोड़े पर सवारी करने लगे। ज्यूंहि भगवान श्री रामदेव जी घोड़े पर सवार हुए कपड़े का घोड़ा हिन हिनाता और आगे के दोनों पैर खड़ा होकर दरबार में ही नाचने लगा, कपड़े के घोड़े को नाचता देखकर सारा दरबार हिनले लगा। नाचते नाचते बालक को लेकर आकाश मार्ग की ओर घोड़ा उड़ चला। इसको देखकर सब घबराने लगे। माता मैणादे,राजा अजमल जी व भाई वीरमदेव सब ही अचम्भे में पड़ गए। राजा अजमल जी को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने दर्जी के घर एक सेवक को भेजा और उस दर्जी को बुलाया। जब राज दर्जी दरबार में पहुँचा,दरबार खचाखच भरा हुआ था। तब अजमल जी ने कहा कि हे राज दर्जी सच सच बताना कि तुमने उस कपड़े के घोड़े पर क्या जादू किया है ? सो मेरे कुंवर को लेकर आकाश में उड़ा।
राज दर्जी कपड़े के घोड़े को आकाश में उड़ता देखकर दंग रह गया और डर के मारे थर थर कांपने लगा और कहने लगा मैने काई जादू नहीं किया। दर्जी की बात का राजदरबार में कोई असर नहीं हुआ। क्योंकि दूसरा कारण था। जो घोड़ा दर्जी ने बनाया था। उसमें पुराने कपड़े लगाकर भगवान के साथ छल किया था। अजमल जी ने कहा यह सब तेरी करामात है इसलिये हुक्म है कि इस दर्जी को पकड़कर कारागृह में डाल दो और सिपाहियों को आदेश दिया कि जब तक रामा कंवर घोड़े से नीचे ना आये तब तक इस दर्जी को अंधेरी कोठरी से बाहर मत निकालना। तब दर्जी कोठरी में पड़ा रोने लगा और भगवान को सुमरन करने लगा।
इस प्रकार दर्जी ने भगवान को पुकारा तब भगवान श्री रामदेव जी ने दर्जी पर कृपा करी। क्योंकि भगवान हमेशा भक्तों के वश में हुआ करते हैं। जब दर्जी ने विनती की तब भगवान रामदेवजी घोड़े सहित काल कोठरी में गए। रामा राज कंवर के कोठरी में आते ही चान्दनी खिल गई और रामदेव जी ने दर्जी से कहा तुमने पुराने कपड़ों का घोड़ा बनाया इसलिये तुम्हे इतना कष्ट उठाना पड़ा। जा मैनें तेरे सारे पाप खत्म किये। तुमने घोड़ा बहुत सुन्दर बनाया और हरे रंग की रेशमी झूल ने मेरा मन मोह लिया। हे दर्जी आज से यह कपड़े का घोड़ा लीले घोड़े के नाम से प्रसिद्ध होगा। जहां पर मेरी पूजा होगी,वहीं पर मेरे साथ इस घोड़े की भी पूजा होगी।


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