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Thursday, 1 November 2012

घोड़लियो:-Baba Ramdev ji Ki Manyataye ( मान्यताएं )


घोड़लियो:

घोड़लियो अर्थात घोडा, बाबा की सवारी के लिए पूजा जाता है कहते है बाबा रामदेव ने बचपन में अपनी माँ मैणादे से घोडा मंगवाने की जिद कर ली थी. बहुत समझाने पर भी बालक रामदेव के न मानने पर आखिर थक हारकर माता ने उनके लिए एक दरजी ( रूपा दरजी) को एक कपडे का घोडा बनाने का आदेश दिया तथा साथ ही साथ उस दरजी को कीमती वस्त्र भी उस घोड़े को बनाने हेतु दिए.घर जाकर दरजी के मन में पाप आ गया और उसने उन कीमती वस्त्रों की बजाय कपडे के पूर( चिथड़े) उस घोड़े को बनाने में प्रयुक्त किये ओर घोडा बना कर माता मैणादे को दे दिया माता मैणादे ने बालक रामदेव को कपडे का घोड़ा देते हुए उससे खेलने को कहा परन्तु अवतारी पुरुष रामदेव को दरजी की धोखाधड़ी ज्ञात थी. अतः उन्होंने दरजी को सबक सिखाने का निर्णय किया ओर उस घोड़े को आकाश में उड़ाने लगे यह देखकर माता मैणादे मन ही मन में घबराने लगी उन्होंने तुरंत उस दरजी को पकड़ कर लाने को कहा दरजी को लाकर उससे उस घोड़े के बारे में पूछा तो उसने माता मैणादे व बालक रामदेव से माफ़ी मांगते हुए कहा कि उसने ही घोड़े में धोखाधड़ी की है ओर आगे से ऐसा न करने का वचन दिया. यह सुनकर रामदेव जी वापिस धरती पर उतर आये व उस दरजी को क्षमा करते हुए भविष्य में ऐसा न करने को कहा इसी धारणा के कारण ही आज भी बाबा के भक्तजन पुत्ररत्न की प्राप्ति हेतु बाबा को कपडे का घोडा बड़ी श्रद्धा से चढाते है |  

                                        गुग्गल धूप 

गुग्गल धूप एक प्रकार का धूप है जो की मुख्यतया राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रो में पाया जाता है. यह दिखने में गोंद की तरह होता है. यह पेड़ों की छाल से निकलता है. माना जाता है कि बाबा प्रसाद चढाने से ज्यादा धूप खेवण से प्रसन्न होते है | गुग्गल धूप की महता इस दोहे में बखान की गयी है- 

हरजी ने हर मिल्या सामे मारग आय |
पूजण दियो घोड़ल्यो धूप खेवण रो बताय || 

बाबा ने अपने परम भक्त हरजी भाटी को यह सन्देश देते हुए कहा कि "हे हरजी संसार में मेरे जितने भी भक्त है उनको तू यह सन्देश पहुंचा की गुग्गल धूप खेवण से उनके घर में सुख-शांति रहेगी एवं उस घर में मेरा निवास रहेगा." बाबा के भक्तजन गुग्गल धूप के अलावा भी अन्य कई धूप यथा बत्तीसा, लोबान, आशापुरी आदि हवन में उपयोग लेते है 

डाली बाई का कंगन 

रामदेव मंदिर में स्थित पत्थर का बना डालीबाई का कंगन आस्था का प्रतीक हैं । डाली बाई का कंगन डाली बाई समाधी के पास ही स्थित हैं ।मान्यतानुसार इस कंगन के अन्दर से निकलने पर सभी रोग-कष्ट दूर हो जाते है । मंदिर आने वाले सभी श्रद्धालु इस कंगन के अन्दर से अवश्य निकलते है । इस कंगन के अन्दर से निकलने के पश्चात ही सभी लोग अपनी यात्रा सम्पूर्ण मानते हैं । 


पगलिया 


पगलिया "पद-चिन्हों" का ही राजस्थानी भाषा में पर्याय है । बाबा के पगलिये श्रद्धालु अपने घर में पूजा के मंदिर या अन्य पवित्र स्थान पर रखते है । पगलियों की महिमा का वर्णन इस दोहे में किया गया है- 

और देवां का तो माथा पूजीजे | 
मारे देव रा पगलिया पूजीजे || 

अर्थात सभी देवताओं के शीश की वंदना होती है जबकि बाबा रामदेव एकमात्र ऐसे देव है जिनके पद चिन्ह (पगलिये) पूजे जाते है । सामान्यता भक्तजन संगमरमर पत्थर के बने पगलिये अपने घरो को ले जाते है । कई भक्तजन सोने चांदी आदि बहुमूल्य धातु के बने पगलिये भी अपने घरों को ले जाते है एवं उनका नित्य प्रतिदिन श्रद्धा भाव से पूजन करते है ।

पवित्र जल

जिस प्रकार गंगाजल की शुद्धता एवं पवित्रता को सभी हिन्दू धर्म के लोग मानते है उसी प्रकार बाबा रामदेव जी के निज मंदिर में एवं अभिषेक हेतु प्रयुक्त होने वाले जल का भी अपना महात्म्य है यह जल बाबा की परचा बावड़ी से लिया जाता है एवं इसमें दूध, घी, शहद, दही, एवं शक्कर का मिश्रण करके इसे पंचतत्वशील बनता जाता है एवं बाबा के अभिषेक में काम लिया जाता हैं . श्रद्धालु इस जल को राम झरोखे में बनी निकास नली से प्राप्त करके बड़ी श्रद्धा से अपने घर ले जाते हैं भक्तजनों का मानना हैं की जिस प्रकार गंगा नदी में स्नान से सभी पाप मुक्त हो जाते हैं उसी प्रकार बाबा के जल का नित्य आचमन करने से सभी रोग विकार दूर होते है | 

काजल 

काजल से आशय बाबा के निज मंदिर में रखी अखंड ज्योत से उत्पन धुंए से है । प्रचलित मान्यता है कि बाबा रामदेव के श्रद्धालु मंदिर से अपने घर उस काजल को ले जाते है और उसमे देशी घी मिला कर अपनी आँखों में लगाते है जिससे कि उनकी आँखों से सम्बंधित बीमारियों से छुटकारा मिलता है ।




पैदल चलने की होड़ 

रामदेवरा (रूणीचा) में प्रतिवर्ष भादवा माह में एक माह तक चलने वाला मेला आयोजित होता है. इस मेले में लाखों की तादाद में श्रद्धालु आते है. ये श्रद्धालु अपने-अपने घरों से बाबा के दरबार तक का सफ़र पैदल तय करते है .कोई पुत्ररत्न की चाह में तो कोई रोग कष्ट निवारण हेतु,कोई घर की सुख-शान्ति हेतु यह मान्यता लेकर की बाबा के दरबार में पैदल जाने वाले भक्त को बाबा कभी खाली हाथ नहीं भेजते यहा पर आते है . पैदल श्रद्धालु अमुमन एक संघ के साथ ही यात्रा करते है और इस संघ के साथ अन्य श्रद्धालु भी मार्ग में जुड़ते जाते है. सभी पैदल यात्री बाबा के जयकारे लगाते, नाचते गाते हुए यात्रा करते है. रात्रि ठहराह के समय ये उस ठहराह स्थल में जम्मा जागरण भी करते है. जब ये पैदल यात्री अपनी यात्रा पूर्ण करके रामदेवरा पहुंचते है तो इनके माथे पर ज़रा सी भी थकान या सिकन दिखाई नहीं देती,बल्कि और भी अधिक जोश के साथ बाबा के जय का उदगोष करते हुए ये भक्तजन बाबा के दर्शन हेतु मीलों लम्बी कतारों में लग जाते है |

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